2 फ़रवरी 2025 - 13:19
मुहम्मद ज़ैफ़: एक अफ़साने का ख़ात्मा या नई शुरुआत?

मुहम्मद ज़ैफ़ 1965 में ख़ान यूनुस के एक ग़रीब खानदान में पैदा हुए। उनका ताल्लुक़ क़बयबा नाम के उस गांव से था, जिसे 1948 में इस्राईल ने क़ब्ज़ा कर लिया था। बचपन से ही वह आर्ट और थियेटर में दिलचस्पी रखते थे

मुहम्मद ज़ैफ़: वो नाम जो दुश्मन के लिए ख़ौफ़ बना रहा।

इस्राईली मीडिया और हुकूमत के लिए सालों तक मुहम्मद ज़ैफ़ का नाम ख़ौफ़ और परेशानी का सबब रहा। हमास की मिलिट्री विंग (क़स्साम ब्रिगेड) के इस लीडर को पकड़ने और मारने के लिए इस्राईल ने न जाने कितनी कोशिशें कीं, मगर हर बार नाकामी ही हाथ लगी। इस्राईली अफ़सरों ने उन्हें "सात जान वाला साया" कहा, क्योंकि 1995 से अब तक उन पर किए गए कई हमले बेकार साबित हुए। मगर अब, जब क़स्साम ब्रिगेड के स्पोक्सपर्सन 'अबू उबैदा' ने उनके शहीद होने की तस्दीक़ कर दी, तो लगता है कि उनका अफ़साना मुकम्मल हो गया।

ख़ौफ़ का नाम: मुहम्मद ज़ैफ़

मुहम्मद ज़ैफ़ का नाम हमेशा इस्राईल के लिए डर का सबब बना रहा। जब इस्राईल की जेलों से रिहा होने वाले फ़िलिस्तीनियों के स्वागत में "नहनो रेजालो मुहम्मद ज़ैफ़" (हम मुहम्मद ज़ैफ़ के सिपाही हैं) का नारा बुलंद हुआ, तो इस्राईली मीडिया ने भी तस्लीम किया कि अब उनकी शख़्सियत सिर्फ़ ग़ज़्ज़ा तक महदूद नहीं, बल्कि फ़िलिस्तीन के दूसरे हिस्सों में भी लोग उन्हें हीरो मानते हैं। उनकी शहादत के बाद यह नारा और बुलंद हो गया और सोशल मीडिया पर उनकी पुरानी तक़रीरें और तस्वीरें वायरल होने लगीं।

एक कमांडर जो साए की तरह मौजूद रहा

7 अक्टूबर की सुबह, जब क़स्साम ब्रिगेड ने "तूफ़ान-ए-अक़्सा" ऑपरेशन लॉन्च किया, तो उसके पीछे ज़ैफ़ की प्लानिंग और लीडरशिप थी। उन्होंने 2021 में "सैफ़ अल-क़ुद्स" (यानी बैतुल-मक़द्स की तलवार) और फिर 2023-24 में "तूफ़ान-ए-अक़्सा" जैसे ऑपरेशन को लीड किया, जिसने इस्राईल को भारी नुक़सान पहुँचाया।

1987 में जब उन्होंने पहली बार रेज़िस्टेंस का हिस्सा बनने का फ़ैसला किया, तो शायद ही किसी को अंदाज़ा था कि वह हमास की मिलिट्री स्ट्रक्चर को एक नई शक्ल देने वाले हैं। 1989 में इस्राईली सेना ने उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और 16 महीने की क़ैद दी। मगर जब वह बाहर आए, तो उन्होंने क़स्साम ब्रिगेड को और ताक़तवर बना दिया।

1993 में जब एमाद अक़ील शहीद हुए, तो उनकी ज़िम्मेदारी ज़ैफ़ ने संभाली। इसके बाद उन्होंने इस्राईल के ख़िलाफ़ कई बड़े ऑप्रेशन किए, जिनमें 1994 में एक इस्राईली सिपाही की गिरफ़्तारी और 1996 में यहया अय्याश की शहादत का बदला लेने के लिए किए गए आत्मघाती हमले शामिल थे, जिनमें 50 से ज़्यादा इस्राईली मारे गए।

ज़ैफ़ और फ़िलिस्तीन की हथियारों की ताक़त

ज़ैफ़ सिर्फ़ एक कमांडर नहीं, बल्कि एक स्ट्रॉटेजिस्ट भी थे। उन्होंने न सिर्फ़ हमास की मिलिट्री ताक़त बढ़ाई, बल्कि नए हथियारों के डेवलपमेंट में भी अहम किरदार अदा किया। 1991 में पहली बार जब फ़िलिस्तीनी ग्रुप्स ने लोकल गन बनाने की कोशिश की, तो वह नाकाम रहे। मगर जब 1994 में अबू बिलाल गुल और फिर 1995 में यहया अय्याश इस मिशन का हिस्सा बने, तो उन्होंने मिलकर नए बम, क़स्साम रॉकेट, अल-बतार मिसाइल और रोडसाइड बॉम्ब्स डेवेलप किए।

ऑर्टिस्ट से रेज़िस्टेंस का कमांडर बनने तक

मुहम्मद ज़ैफ़ 1965 में ख़ान यूनुस के एक ग़रीब खानदान में पैदा हुए। उनका ताल्लुक़ क़बयबा नाम के उस गांव से था, जिसे 1948 में इस्राईल ने क़ब्ज़ा कर लिया था। बचपन से ही वह आर्ट और थियेटर में दिलचस्पी रखते थे। उन्होंने एक इस्लामिक आर्ट ग्रुप "अल-आएदून" (वापसी करने वाले) में भी काम किया।

उनका निकनेम "अबू ख़ालिद" भी एक ड्रामा से लिया गया था, जिसमें उन्होंने "अल-मुहर्रिज़" का रोल प्ले किया था। मगर तक़दीर ने उन्हें रेज़िस्टेंस का हीरो बना दिया, और वह एक ऐसा कमांडर बन गए, जिसने इस्राईल को हर वक़्त परेशान रखा।

आख़िर में...

मुहम्मद ज़ैफ़ की शख़्सियत हमेशा एक रहस्य बनी रही। उनके बारे में बहुत कम जानकारी मिलती थी, और इस्राईल के बार-बार हमले के बावजूद वह बच निकलते थे। मगर अब, जब उनकी शहादत की तस्दीक़ हो चुकी है, तो यह कहा जा सकता है कि फ़िलिस्तीन के एक बड़े जिहादी लीडर का सफ़र मुकम्मल हो गया। उनका नाम रेज़िस्टेंस की तारीख़ में हमेशा ज़िंदा रहेगा।